❤श्री राधा गोपीनाथ❤

 
❤श्री राधा गोपीनाथ❤
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मोहन रास रच्यौ वृंदावन, भानुसुता के कूलें जू । शरद चंद विकसत मनोहर, कुंज लता द्रुम फूलें जू ॥ १ ॥ ठौर ठौर कुसुमन के गुच्छा, छबि पावत अति झूलें जू । बाजत ताल मृदंग चंग वर, बंसीबट के मूलें जू ॥ २ ॥ नाचत गावत मंडल कियें, सखियन मध्य अति ठूलें जू । सुनि धुनि अति मन मनोहर, शिव विरंचि सुधि भूलें जू ॥ ३ ॥ जय जय जय यदुराय मनोहर, सुर मुनि बरखत फूलें जू । वृंदावन प्रभूकौ सुख निरखत, मिटत सकल तन शूलें जू ॥ ४ ॥ ♥️ यमुना पुलिन सुभग वृन्दावन, नवल लाल श्रीगोवर्द्धनधारी । नवल निकुंज नवल कुसुमित दल, नवल नवल वृषभानदुलारी ॥ १ ॥ नवल हास नवल छब क्रीडत, नवल विलास करत सुखकारी । नवल श्रीविठ्ठलनाथ कृपाबल, नंददास निरखत बलिहारी ॥ २ ॥ ♥️ ब्रजबनिता मध्य रसिक राधिका, बनी शरद की राति हो । नृत्यत तत थेई गिरिधर नागर, गौर श्याम अंग कांति हो ।। 1 ।। एक एक गोपी बिचबिच माधौ, बनी अनूपम भांति हो । जयजय शब्द उच्चारत सुरमुनि, कुसुमन बरख अघाति हो ।। 2 ।। निरखि थक्यौ शशि आयौ शीश पर, क्यों हूँ न होत प्रभात हो । परमानंद प्रभु मिलै यह अवसर, बनी है आजकी बात हो ।। 3 ।। ♥️ पौढ़े रंग महल गोविंद । श्री राधिका संग सरद रजनी, उदित पून्यौ चंद ।। 1 ।। बिबिध चित्र बिचित्र चित्रित, कोटि कोटिक बंद । निरख निरख बिलास बिलसत, दंपती रसछंद ।। 2 ।। मलय चंदन अंगन लेपन, परस्पर आनंद । कुसुम बीजना प्यार ढोरत, सजनी परमानंद ।। 3 ।। ♥️ आगें कृष्ण, पाछें कृष्ण, इत कृष्ण, उत कृष्ण, जित देखो तित कृष्ण मईरी । मोरमुकुट धरें कुंडल, किरण धरें, मुरली मधुरध्वनि, तान नईरी ॥ १ ॥ काछिनी काछें लाल, उपरैना पीतपट, तिहिं काल शोभा, देख थकित भईरी । छीतस्वामी गिरिधरन, श्रीविठ्ठल निरखत छबि, अंग अंग छईरी ॥ २ ॥
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