☀श्री सीता राम लक्ष्मण हनुमान☀

 
☀श्री सीता राम लक्ष्मण हनुमान☀
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जयति सच्चिदव्यापकानंद परब्रह्म-पद विग्रह- व्यक्त लीलावतारी। विकल ब्रह्मादि, सुर, सि, संकोचवश, सिद्ध, संकोचवश, विमल गुण-गेह नर-देह - धारी।1। जयति कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य-फल चारू चारी। वेद-बोधित करम -धरम-धरनीधेनु, विप्र- सेवक साधु-मोदकारी।2। जयति ऋषि-मखपाल, शमन-सज्जन-साल, शापवश मुनिवधू-पापहारी। भंजि भवचाप, दलि दाप भूपावली, सहित भृृगुनाथ नतमाथ भारी।3। जयति धारमिक-धुर, धी रघुवीर गुरू-मातु-पितु- बंधु- वचनानुसारी। चित्रकुटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन, धन्यकृत पुन्यकानन- विहारी।4। जयति पाकारिसुत-काक-करतुति-फलदानि खनि गर्त गोपित विराधा। दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडंबित करी विश्वबाधा।5। जयति खर-त्रिशिर-दूषण चतुर्दश-सहस-सुभट- मारीच-संहारकर्ता। गृन्ध्र-शबरी-भक्ति-विवश करूणासिंधु, चरित निरूपाधि, त्रिविधार्तिहर्ता । 6। जयति मद-अंध कुकबंध बधि, बालि बलशालि बधि, करन सुग्रीवराजा। सुभट मर्कट-भालु-कटक-संघट सजत, नमत पदरावणानुत निवाजा।7। जयति पाथोधि-कृत-सेतु कौतुक हेतु, काल-मन- अगम लई ललकि लंका।। सकुल,सानुज,सदल दलित दशकंठ रण, लोक-लोकप किये रहित-शंका।8। जयति सौमित्र-सीता-सचिव-सहित चले पुष्पकारूढ़ निज राजधानी। दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल, राम भे भूप वैदेहि रानी।9।।
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