❤श्री राधा वंशीधर❤

 
❤श्री राधा वंशीधर❤
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राधिके ! तुम मम जीवन-मूल। अनुपम अमर प्रान-संजीवनि, नहिं कहुँ को‌उ समतूल॥ जस सरीर में निज-निज थानहिं सबही सोभित अंग। किंतु प्रान बिनु सबहि यर्थ, नहिं रहत कतहुँ को‌उ रंग॥ तस तुम प्रिये ! सबनि के सुख की एकमात्र आधार। तुहरे बिना नहीं जीवन-रस, जासौं सब कौ प्यार॥ तुहारे प्राननि सौं अनुप्रानित, तुहरे मन मनवान। तुहरौ प्रेम-सिंधु-सीकर लै करौं सबहि रसदान॥ तुहरे रस-भंडार पुन्य तैं पावत भिच्छुक चून। तुम सम केवल तुमहि एक हौ, तनिक न मानौ ऊन॥ सो‌ऊ अति मरजादा, अति संभ्रम-भय-दैन्य-सँकोच। नहिं को‌उ कतहुँ कबहुँ तुम-सी रसस्वामिनि निस्संकोच। तुहरौ स्वत्व अनंत नित्य, सब भाँति पूर्न अधिकार। काययूह निज रस-बितरन करवावति परम उदार॥ तुहरी मधुर रहस्यम‌ई मोहनि माया सौं नित्य। दच्छिन बाम रसास्वादन हित बनतौ रहूँ निमिा॥
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shwetashweta
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