❤श्री राधे श्याम❤

 
❤श्री राधे श्याम❤
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आजु बन राजत जुगल किसोर | नंद नँदन वृषभानु नंदिनी उठे उनीदें भोर || डगमगात पग परत सिथिल गति परसत नख ससि छोर | दसन बसन खंडित मषि मंडित गंड तिलक कछु थोर|| दुरत न कच करजनि के रोकें अरुन नैन अलि चोर | (जै श्री) हित हरिवंश सँभार न तन मन सुरत समुद्र झकोर ||33||श्री हित हरिवंश महाप्रभु, हित चतुरासी पद हिंदी अनुवाद आज प्रातः काल श्रीनन्द नन्दन एवं वृषभानु नन्दिनी उनींदे ही उठ पड़े हैं और निकुञ्ज के अन्तर्भाग में डगमगाते चरणों से प्रेम विक्षिप्त की सी दशा में किंवा सुरतालस पूर्ण खुमारी में डूबे वहीं भ्रमण कर रहे हैं | युगल की इस दशा का दर्शन – अवलोकन करके श्रीहित सजनी अपनी सखियों से उसका वर्णन कर रही हैं – आज श्रीवृन्दावन में युगल किशोर यों शोभा पा रहे हैं कि नन्द नन्दन एवं श्रीवृषभानु नन्दिनी प्रातः काल ही उनींदे उठ पड़े हैं – रात्रि में पूरी तरह सो भी नहीं पाये (क्योंकि रति विहार के आनन्द ने मानों उन्हें सोने को कोई समय ही न दिया !) अतः चलते समय उनके चरण डगमगाते हैं और (गमन) गति भी शिथिल है | चलते हुए दोनों एक दूसरे को वसनांचलों का – पट छोरों का अपने अपने नख चन्द्र से स्पर्श करते (एवं आकर्षण करते हैं |) अधर क्षत विक्षत हैं, गण्ड मण्डल कज्जल से मण्डित है | ललाट पटल पर तिलक कुछ थोड़ा सा ही अवशेष रह गया है | अरुण नयन, जो चोर अलि – भ्रमर ही हैं केश राशि एवं उँगलियों के द्वारा छिपाये जाने पर भी नहीं छिपते -गोप्य रस पूर्ण रति विहार का प्रकाश किये ही दे रहे हैं| श्रीहित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु कहते हैं कि सुरत समुद्र की झकझोर के कारण (आज दोनों को अपने अपने) तन एवं मन की भी सँभाल नहीं रह गयी है, (ऐसे रस मग्न हो रहे हैं !)
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