✨श्री राधा मोहन✨

 
✨श्री राधा मोहन✨
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हौं तो दासी नित्य तिहारी। प्राननाथ जीवनधन मेरे, हौं तुम पै बलिहारी॥ चाहैं तुम अति प्रेम करौ, तन-मन सौं मोहि अपना‌औ। चाहैं द्रोह करौ, त्रासौ, दुख दे‌इ मोहि छिटका‌औ॥ तुहरौ सुख ही है मेरौ सुख, आन न कछु सुख जानौं। जो तुम सुखी हो‌उ मो दुख में, अनुपम सुख हौं मानौं॥ सुख भोगौं तुहरे सुख कारन, और न कछु मन मेरे। तुमहि सुखी नित देखन चाहौं निस-दिन साँझ-सबेरे॥ तुमहि सुखी देखन हित हौं निज तन-मन कौं सुख देन्नँ। तुमहि समरपन करि अपने कौं नित तव रुचि कौं सेन्नँ॥ तुम मोहि ’प्रानेस्वरि’, ’हृदयेस्वरि’, ’कांता’ कहि सचु पावौ। यातैं हौं स्वीकार करौं सब, जद्यपि मन सकुचावौं॥
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